भक्त शिरोमणि हनुमान
महावीर हनुमान का प्राकट्य शिव के अंश ग्यारवें रूद्र के रूप में त्रेतायुग में हुआ था। ये पवन देव के औरस पुत्र एवं वानरराज केसरी के क्षेत्रज पुत्र थे। इनकी माता का नाम अन्जना था। इनके अवतरण काल के सम्बन्ध में भिन्न -भिन्न मत है। कुछ लोग इन्हे कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को तथा कुछ लोग इन्हे चैत्रमास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को अवतरित होना मानते हैं।
अवतरण काल जो भी रहा हो किन्तु यह निर्विवाद एवं दृष्टव्य है कि हिन्दू देवता के इस महापुरुष को सभी धर्मां के लोग बड़ी श्रद्धा भाव से देखते हैं और इनकी महिमा को स्वीकार करते हं। लखनऊ के अलीगंज के हनुमान मन्दिर के कलश पर स्थापित अर्द्ध चन्द्र एवं इस सम्बन्ध की घटनाएं मुस्लिम धर्म का इनके प्रति आस्था का जीता जागता उदाहरण है। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा हनुमानजी का चिन्ह सदैव अपने साथ रखते है। इसके अतिरिक्त अन्य धार्मिक लोगो की भी इनके प्रति आस्था श्रद्धा और विश्वास है।
यह त्रेता युग मे राम भक्त के रूप में नवधा भक्ति के दास्य भाव के शिव भक्त थे। इन्होंने सूर्य भगवान से शिक्षा पाई। ये ज्ञानियों में अग्रणीय एवं चारां वेदां के ज्ञाता थे। इन्हें माता सीता ने आठों सिद्धिओं नवों निधियों से सम्पन्न होने का वरदान दिया था। ये पराक्रम, उत्साह, बुद्धि प्रताप, सुशीलता, मधुरता, नीति अनीति के विवेक गम्भीरता, चतुरता, उत्तम बल एवं धर्म संत्र मे सदैव शीर्षस्थ प्रमाणित है। तुलसी का रामचरितमानस हो या वाल्मीकि रामायण या अन्य ग्रन्थ जहाँ-जहाँ भी इनका वर्णन आया है इनके उपरोक्त गुण अपनी शीर्षस्थता इनका प्रमाण देते है इससे सभी परिचित है अतः इस पर प्रकाश डालने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती।
तुलसी रामायण के किष्किन्धाकाण्ड से लेकर उत्तरकाण्ड तक चारों काण्डों मे हनुमानजी के आदर्श साहसी, दास्य-सेव्य, वीर, रौद्र चातुर्य, धैर्य, परोपकारी आदि स्वरूपो के अनुकरणीय स्वरूपों के दर्शन मिलते है। सिद्ध प्रयोग प्रायः सभी भक्त स्वीकार करते है। इनके गुणों एवं सेवा, समर्पण भाव से अभिभूत होकर भगवान राम ने धर्म एवं भक्तां के रक्षार्थ पृथ्वी पर संदेह रहने का आदेश दिया था। इसी कारण त्रेतायुग हो या द्वापर या कलियुग हर युग में इनकी उपस्थित भक्तों को दृष्टिगत राह अनुभव हुई है। वाल्मीकि रामायण में राम का यह आदेश इनको प्रस्तुत करता है।
मत्कथाः प्रचरिष्यन्ति यावल्लोके हरीश्वरः ।
तावद्रमस्य सुप्रीतो मदवाक्यमनुपालयन ।
वा. रा. (7/108/33-34)
इनका निवास किम्पुरुष वर्ष एवं साकेत माना जाता है जहाँ राम कथा होती है सभी भक्तों के कष्ट की करुण पुकार उठती है, ये बिना विलम्ब वहाँ पहुंच जाते है। लखनऊ के हनुमान सेतु मंदिर स्थापना का इतिहास देखें तो इनके वर्तमान युग मे असितत्व का स्पष्ट साक्ष्य प्रकट करता है। इससे सभी परिचित हैं इसी प्रकार भारत के अन्य स्थानों में भी लोगों में इनकी वर्तमान युग में स्थिति अस्तित्व एवं विचरण को स्वीकार किया है। ऐसे अजर अमर प्रभु भक्तों की करुण पुकार पर शीघ्र आकर उन्हें भय एवं कष्ट से मुक्त करने वाले महाबली हनुमान के चरणों मे मेरा बारम्बार प्रणाम है।
वैद्य विश्वमोहन मिश्र
गोमती नगर, लखनऊ