रोमांचक रही पावन कैंची धाम यात्रा
15 जून 2019, दिन- शनिवार यह दिन और दिनांक आजीवन मेरे लिए महत्वपूर्ण रहेंगे, क्योंकि इस दिन ''गुरूदेव ने मुझे प्रथम बार अपने दर पर बुलाया था। वह यादगार दिवस मैं सम्पूर्ण जीवन नहीं भूल सकूंगा। कैंची धाम की यह यात्रा अत्यंत रोमांचित थी। गंतव्य स्थान से खुटानी मार्ग तक का सफर तो सरल था, किंतु यहां से आगे की राह इतनी आसान नहीं थी। कैंची धाम स्थापना दिवस पर हजारों श्रद्धालु ''बाबाजी'' के दर्शन के लिए आए थे और ऐसे में वाहनों की आवाजाही होना लाजिमी था। खुटानी से फरसौली तक का मार्ग तो हमने जैसे-तैसे गाड़ी से तय कर लिया, फिर फरसौली से भवाली के बीच लगा भंयकर वाहनों के जाम की स्थिति को देखते हुए हमने फरसौली में ही उतरने का निर्णय लिया। अब यहीं से असली परीक्षा थी कि यहां से भवाली पैदल कैसे पहुंचा जाए। ''बाबाजी'' की कृपा थी और एक सज्जन ने हमें भवाली तक जाने के लिए एक किमी. दूरी का पैदल मार्ग बताया जिसे हम लोग अपनी आम भाषा में ''शॉर्ट कट'' कहते हैं। रास्ता तो ठीक था लेकिन काफी ऊँची चढ़ाई और ऊपर से गर्मी के कहर से भक्तों को थोड़ी दिक्कत पेश हुई। चढ़ाई इतनी ऊँची कि एक भक्त ने मजाक-मजाक में बोला कि मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं कैलाश मानसरोवर की चढ़ाई चढ़ रहा हूँ, खैर गुरूदेव की कृपा से पूरा रास्ता यूँ ही हँसी-मजाक में बीत गया और आखिर में हम मेहरागाँव होते हुए भवाली पहुँचे।
अब यहाँ से निगलाट तक का करीब तीन-चार कि.मी. तक का मार्ग कैंची धाम सेवा में लगे वाहन से तय किया और अब तो सभी भक्तों को मुख्य कैंची धाम तक पैदल ही चलना था। चलते-चलते रास्ते में कई पंडाल मिले जिसमें कई सेवक इस भरी गर्मी में श्रद्धालुओं की सेवा में लगे हुए थे। कोई पानी पिला रहा था, कोई रूहआफजा तो, ठंडी लस्सी। ऐसी सेवा देखकर मेरा रोम-रोम पुलकित हो उठा। मैंने वहीं मन ही मन ''गुरूदेव'' से प्रार्थना की, कि ऐसी सेवा का मौका एक बार मुझे भी अवश्य दें। हम यूं ही भक्ति की धुन में पैदल चलते जा रहे थे कि अचानक हमने देखा कि एक बड़ी लंबी कतार हमारे आगे खड़ी थी। अन्य खड़े भक्तों से पूछने पर पता चला कि कतार ''बाबाजी'' के दर्शन के लिए लगी है। मैं तो कुछ पल के लिए सचमुच अवाक् रह गया। इतनी लंबी कतार, जबकि हमें अब तक मंदिर दिखाई भी नहीं दे रहा था। अंत में हम भीं कतार में खड़े हो गये, ''बाबाजी'' के दर्शन जो करने थे। मेरे ही बगल में एक सज्जन भक्त से पूछने पर पता चला कि मुख्य ''श्री कैंची धाम'' से अभी हम 5 कि.मी. दूर है। मतलब साफ था कि ''गुरू दर्शन'' के लिए खड़ी कतार करीब 5 कि.मी. से भी ज्यादा लंबी है। सभी भक्तजन कतार में खड़े बाबाजी के गुण गाते हुए उनक दर्शन के लिए व्याकुल थे। लंबी कतार और आग बरसाती धूप भक्तों के लिए परीक्षा थी। यों ही हम धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए। मन में ''गुरु दर्शन'' की इच्छा के बोये हुए बीज की फसल सरसब्ज होती जा रही थी। ''कैंची धाम'' में भक्तों द्वारा ''बाबाजी'' की हो रही जय-जयकार की ध्वनि ऊपर 3-4 कि.मी. दूर सड़क तक गूँज रही थी। इस जय-जयकार से सभी ऊपर खड़े भक्तजन प्रभावित हो रहे थे और फिर वहाँ भी ''गुरूदेव'' की जय-जयकार का नारा लगता। वास्तव में मन प्रसन्न हो उठा। मुख्य कैंची धाम तक पहुंचने के लिए सभी श्रद्धालुगण संघर्षरत थे। इसी संघर्ष को देखकर आज एक चीज तो समझ में आयी कि जो लक्ष्य हमें किसी भी परिस्थिति में हासिल करना होता है उसके लिए हम हर हाल में! भूखे-प्यासे ही सही, डटे रहते है। चाहे वह लक्ष्य कितना ही मुश्किल क्यों न हो। यहां हमारा मुख्य लक्ष्य ''कैंची धाम'' पहुंचकर ''बाबाजी'' के दर्शन कर आशीर्वाद लेना था। जिसके लिए हम सुबह 11ः15 बजे से दोपहर 2ः30 बजे तक कतार में रहे। गुरूदेव की कृपा से आखिरकार वो क्षण आ ही गया जिसका इंतजार कई दिनों से बेसब्री से कर रहा था। ''श्री कैंची धाम'' के प्रवेश द्वार के भीतर करते ही हम सभी भक्तों ने ''गुरूदेव'' की जयकार के नारे लगाए। पूरा मंदिर परिसर ''बाबा श्री नीब करौरी महाराज की जय'' की महाध्वनि से गूंज उठा। इन क्षणों में मन इतना आनंदित हो उठा कि कण-कण से ''गुरूदेव की जय'' सुनाई महसूस हो रही थी। अंत में वो पल आ ही गया जिसके लिए पिछले एक वर्ष से तरस रहा था। वो पल था ''परम पूज्य बाबा श्री नीब करौरी महाराज जी'' के दर्शन। ''बाबाजी'' के दर्शन मात्र से हृदय गद्गद् हो गया और अंतर्मन भावुक हो उठा। इन आंखों को जिसकी प्यास थी वे प्यास आज बुझ गयी थी। ''बाबाजी'' के दर्शन के बाद हमने प्रसाद प्राप्त किया, बाबा जी को भोग लगे लड्डू, मालपुए और सब्जी जो आज तक मैंने सिर्फ लोगों से सुना था। प्रसाद ग्रहण करने के बाद अब मेरी बारी थी कि ''गुरूदेव के आशीर्वाद'' से पूरे कैंची धाम के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना।
''श्री कैंची धाम'' के प्रथम प्रवेश द्वार के अंदर जाते ही आपको पहले सीढ़ियां और फिर पवित्र उत्तर वाहिनी नदी पर बने हुए पुल से होकर गुजरना पड़ता है। पुल पार कुछ ही दूरी पर धाम का दूसरा प्रवेश द्वार है। इस द्वार के अंदर प्रवेश करते ही सर्वप्रथम ''माँ वैष्णवी देवी'' के मंदिर के दर्शन होते हैं। तत्पश्चात् क्रमशः ''श्री महादेव मंदिर'', ''श्री लक्ष्मी-नारायण मंदिर'' और ''श्री हनुमान मंदिर'' के दर्शन होते है। ''श्री हनुमान मंदिर'' से थोड़ा आगे चलने पर दायीं हाथ की ओर थोड़ी दूरी पर ''बाबाजी'' की गुफा है। कहा जाता है कि ''बाबाजी'' इसी गुफा के अंदर बैठकर ध्यान करते थे।
गुफा-दर्शन से वापस आने के बाद सीधे ऊपर प्रांगण में ''बाबाजी'' के ही दर्शन होते हैं। ''बाबाजी'' के दर्शन के बाद ''परम पूज्यनीय श्री सिद्धि गुरु मां'' का मंदिर आता है। ''गुरू मां'' के पावन चरण पादुकाओं में शीश नवाकर जब बाहर आते हैं तो बायीं हाथ की ओर ''मां दुर्गा-माता मंदिर'' पावन धाम की शोभा में चार चांद लगाता है। प्रांगण से सीधे हाथ चलकर आगे मंदिर की धर्मशालाएं, स्वयंसेवक कक्ष और कार्यालय मिलते हैं। फिर यहां से आगे सीधे चलकर प्रसाद वितरण स्थल आता है। ''श्री कैंची धाम'' के बारे में और भी बहुत कुछ जानकारी मुझे स्वयंसेवकों के द्वारा जानने को मिली जिनका यहां लिखित वर्णन करना मुश्किल है।
श्री कैंची धाम घूमते हुए और जानकारियाँ इकट्ठी करते हुए अब संध्या हो चुकी थी। संध्या समय आरती का दृश्य अति मनमोहक था। संध्या समय ''श्री कैंची धाम'' का विहंगम दृश्य सड़क मार्ग से देखते ही बन रहा था। यह सब गुरूदेव की लीला का ही असर था। रात्रि के 10 बज चुके थे और ''बाबाजी'' के दर्शन के लिए भीड़ अब भी ज्यों की त्यों बनी हुई थी। भीड़ को संरक्षित करने के लिए पुलिस प्रशासन को भी काफी मशक्कत करनी पड़ी।
म्ंदिर के कपाट बंद होने के पश्चात् अब रात्रि विश्राम करने का समय आ चुका था। ''गुरूदेव'' की आज्ञा लेने के बाद हम धर्मशाला में बने शयन कक्ष की ओर चल दिए।
भोर में आंख खुलने के पश्चात् हमने देखा कि आरती हो चुकी थी और हम आरती में सम्मिलित नहीं हो पाए शायद यही गुरु इच्छा थी। तत्पश्चात् हमने ''बाबाजी'' के मंदिर के सामने ''हनुमान चालीसा'' का पाठ किया और ''गुरु चरणों'' में प्रणाम कर आशीर्वाद मांगा।
अब वक्त आ चुका था कि हम ''गुरू'' जी से आज्ञा ले अपने गंतव्य स्थान की ओर जाने की। ''गुरूदेव'' से और ''सभी देवताओं'' से आशीर्वाद लेकर हमने ''श्री कैंची धाम'' से अपने गंतव्य स्थान की ओर प्रस्थान किया। यह मेरी पहली ''कैंची धाम'' यात्रा थी और ''गुरू कृपा से यह यात्रा शुभ और सफल रही। जय गुरूदेव आपकी कृपा सभी भक्तों पर सदैव बनी रहे।